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Monday, 12 November 2018

कविता

मेरे प्रिय साथी शिक्षक Vardha Ram Suthar द्वारा लिखी गई कविता...
** आम समझ आक सिंचते रहे **
           
इतिहास ढूंढन को मैं चला ,ढूंढता रहा रात और दिन !
महापुरूष तो अनेक मिले,जिनको मै नही पाया गिन !!
जिनको मैं नही पाया गिन,अपने हीे इन नग्न नेत्रों से !
एक से बढकर एक मिलै, वो  भी भिन्न भिन्न क्षेत्रों से !!

मक्कारों को महान कहा,चापलूसी करते चाटूकारों ने !
देशद्रोहियों को देशभक्त कहा,भाषण कविता नारों ने !!
सच्चा इतिहास चुपा दिया,देश के ही इन रखवालों ने !
फांसी के फंदे चूमने वाले, गुमे  गुमनामी के तालों मे !!

चोर लुटेरे चालाक छा गए,  इतिहास के  पहले  पृष्ठों में !
लाखों लाल भेंट चढे,जाफर जयचन्दों जैसों के धृष्टों में !!
दगेबाजों ने ही दगा दिया,मामा शकुनी  जैसी चालों से !
घड़ियाली रोना भी वो रोए , अपने ही गद्देदार गालों से !!

मान मर्यादा पाकर वो मस्त रहे,अपनी  मस्त मस्ती में !
बगुले भी हंस बनकर घूमते रहे,राजहंसों की बस्ती में !!
आम समझ आक सिचते रहे ,अपने ही इन मटकों से !
वतन का होता रहा पतन,ऐसे असामाजिक घटकों से !!
 
   रचनाकार :-वरदाराम सुथार "पुनराऊ"
   रा. उ. प्रा. वि. सिंधासवा चौहान, गुड़ा मालानी, बाड़मेर