मेरे प्रिय साथी शिक्षक Vardha Ram Suthar द्वारा लिखी गई कविता...
** आम समझ आक सिंचते रहे **
इतिहास ढूंढन को मैं चला ,ढूंढता रहा रात और दिन !
महापुरूष तो अनेक मिले,जिनको मै नही पाया गिन !!
जिनको मैं नही पाया गिन,अपने हीे इन नग्न नेत्रों से !
एक से बढकर एक मिलै, वो भी भिन्न भिन्न क्षेत्रों से !!
मक्कारों को महान कहा,चापलूसी करते चाटूकारों ने !
देशद्रोहियों को देशभक्त कहा,भाषण कविता नारों ने !!
सच्चा इतिहास चुपा दिया,देश के ही इन रखवालों ने !
फांसी के फंदे चूमने वाले, गुमे गुमनामी के तालों मे !!
चोर लुटेरे चालाक छा गए, इतिहास के पहले पृष्ठों में !
लाखों लाल भेंट चढे,जाफर जयचन्दों जैसों के धृष्टों में !!
दगेबाजों ने ही दगा दिया,मामा शकुनी जैसी चालों से !
घड़ियाली रोना भी वो रोए , अपने ही गद्देदार गालों से !!
मान मर्यादा पाकर वो मस्त रहे,अपनी मस्त मस्ती में !
बगुले भी हंस बनकर घूमते रहे,राजहंसों की बस्ती में !!
आम समझ आक सिचते रहे ,अपने ही इन मटकों से !
वतन का होता रहा पतन,ऐसे असामाजिक घटकों से !!
रचनाकार :-वरदाराम सुथार "पुनराऊ"
रा. उ. प्रा. वि. सिंधासवा चौहान, गुड़ा मालानी, बाड़मेर